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Sunday, 18 April 2010

यह बीस वर्ष का वनवास

यह बीस वर्ष का वनवास ,

नहीं जीवन भर का कारावास !
अदृश्य अछूता मेरा विश्वास,
मृत्यु से आगे रहे मेरी श्वास !


मोक्ष की नहीं अब मुझे है आस
रक्त बूँद बूँद करे एहसास:
विजय पथ मेरा हो: जीवित रहे प्रयास,
स्वर्णभूमि, मातृभूमि मेरी प्यास!

अडिग अमर अजय स्वर्णिम यह एहसास
उज्जवल सारस्वत वंदना की सांस
विरह मन करे वितस्ता का आभास
पूर्ण करूँ प्रतिज्ञा, संपूर्ण तब इतिहास !


शूर हूँ वीर हूँ बलिदान मेरा समास,
वीरगति शय्या मेरी: जैसे जलता कपास!
श्रद्धा मन ऐसी: जैसे रघु पर तुलसीदास,
समय अवसर हो: पूरण करूँ अपनी प्यास ...
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